सुभाष शर्मा
सुभाष शर्मा की हीर
अब तो शायद ही कोई हीर रांझा के लिए रोती है
अब तो ले नींद की गोली वो आराम से सोती है
अब तो कोई हीर ही रो रो के पतली होती है
पतली होती है वही जो डाइ टिंग पे होती है
कौन सी हीर है जो रात रांझे के बाद खाती है
बाद में खाती है तो सिर्फ आइसक्रीम खाती है ।
अब वो हीरे ही कहाँ जो पहली बार में शर्माती है
चैट पर पहले से ही उनकी झिझक खुल जाती है
कौन सी हीर है जो रांझे से पूछ कर ही कुछ करती है
आज की हीर तो बस गूगल पे ही दम भारती है
लोग कहते हैं की तोफा न दो तो हीर रूठ जाती है
आज की हीर सीधे ही ई बे से खरीद लाती है
अब वो हीर कहाँ जो रांझे के जाने पे न सो पाती हैं
अब तो जाते ही सीधे फेसबुक पे चिपक जाती हैं
लोग कहते हैं की झूठी कसम खाने से उम्र कम हो जाती है
मेरी हीर तो पहले से भी ज्यादा तंदुरुस्त नजर आती है
पास रांझा ना हो तो अब हीर की मौज ही मौज होती है
खाना रेस्टोरेंट में और शाम सिनेमा में रोज होती है
हीर तो तन के नहीं मन के लिए आती है
आज की हीर तो बस फन के लिए आती है
हीर की पीर तो रांझा ही समझ सकता है
जेब खाली है और हालत भी उसकी खस्ता है
हीर ही हीर अब सब और नजर आती हैं
नजर जिसकी पड़े वो उसकी ही होजाती है
बदला रांझा है तभी हीर आज है बदली
तभी रांझा न कोई हीर अब मिलते असली
परखते सब हैं दुकानों पे क्या असली नकली
कभी बनियों की दुकानों पे मिला घी असली
अब तो ले नींद की गोली वो आराम से सोती है
अब तो कोई हीर ही रो रो के पतली होती है
पतली होती है वही जो डाइ टिंग पे होती है
कौन सी हीर है जो रात रांझे के बाद खाती है
बाद में खाती है तो सिर्फ आइसक्रीम खाती है ।
अब वो हीरे ही कहाँ जो पहली बार में शर्माती है
चैट पर पहले से ही उनकी झिझक खुल जाती है
कौन सी हीर है जो रांझे से पूछ कर ही कुछ करती है
आज की हीर तो बस गूगल पे ही दम भारती है
लोग कहते हैं की तोफा न दो तो हीर रूठ जाती है
आज की हीर सीधे ही ई बे से खरीद लाती है
अब वो हीर कहाँ जो रांझे के जाने पे न सो पाती हैं
अब तो जाते ही सीधे फेसबुक पे चिपक जाती हैं
लोग कहते हैं की झूठी कसम खाने से उम्र कम हो जाती है
मेरी हीर तो पहले से भी ज्यादा तंदुरुस्त नजर आती है
पास रांझा ना हो तो अब हीर की मौज ही मौज होती है
खाना रेस्टोरेंट में और शाम सिनेमा में रोज होती है
हीर तो तन के नहीं मन के लिए आती है
आज की हीर तो बस फन के लिए आती है
हीर की पीर तो रांझा ही समझ सकता है
जेब खाली है और हालत भी उसकी खस्ता है
हीर ही हीर अब सब और नजर आती हैं
नजर जिसकी पड़े वो उसकी ही होजाती है
बदला रांझा है तभी हीर आज है बदली
तभी रांझा न कोई हीर अब मिलते असली
परखते सब हैं दुकानों पे क्या असली नकली
कभी बनियों की दुकानों पे मिला घी असली
मैंने जिन्दगी गुजार ली
बात बात में ही मैंने जिन्दगी गुजार ली
अपनी दे दी गैर को दूसरी उधार ली
कौन जाने किसकी आह किसकी चाह खा गयी
उसकी चाह मुझको मेरी राह में गुमा गयी
मैंने अपनी राह उनकी चाह से बुहार ली १
काली रात का अन्धेरा जुगनुओं की चाह थी
जुगनुओं की भीड़ में रात की ना थाह थी
मैंने अपनी रात जाग जाग कर गुजार ली २
आरहे थे स्वप्न स्वप्न में भ़ी स्वप्न आगये
मुझको भूली राह नए स्वप्न फिर दिखा गए
मैंने अपनी भूल भूल कहके फिर सुधार ली ३
पक्षियों के झुण्ड में मैना एक खडी हुयी
मोतियों की एक लड़ धूल में पडी हुयी
मैंने एक याद फिर गडी हुयी उखाड़ ली ४
फूल सी सिकुड़ गयी वो याद में पडी पडी
मोम सी पिघल गयी वो सामने खडी खडी
सोच सोच कर हवा में मूर्ती उभार ली | ५
जिस्म में ख्वाइशें
हमें तुम गैर कह कर क्यों सभी से दूर करते हो
चाहने वालों में एक नाम मुझको भ़ी कमाना है |
जिस्म में ख्वाइशें तो यूं हजारों थीं मेरे यारो
मगर किस्मत में जो लिक्खा वही हम को निभाना है |
यूं तो मेरी गली में रोज एक आता भिकारी है |
मैं उसको दूं भला क्या मुझको बच्चों को खिलाना है |
आग पानी में लगती है तो लग जाने भ़ी दो अबके
समुन्दर को जलाकर मुझको लोगों को दिखाना है |
मेरी तारीफ़ करके क्यों मुझे देते हो तुम धोखा
मुझे मालूम है इस शहर में किसका ज़माना है |
बदलने को बदल जाऊं मगर कोई बजह तो हो
मुझे इस उम्र में अब नाम थोड़े ही कमाना है |
तोड़ दो वायदे कश्में मुझे क्या फर्क पड़ता है
मुझे अब कौन सा तुमसे कोई रिश्ता निभाना है |
इरादा जो भ़ी हो तुम जानते मन में खुद बेहतर
मुझे कह कर के ईसा लगता सूली चढ़ाना है |
लगी थी आग सीने में सो तुमसे पानी कह बैठा
बरना आंसू से ही मुझको तो बड़वानल बुझाना है |
मुकद्दर में लिखी है मुफलिसी मजबूर इस खातिर
बरना एक खूबसूरत ताज मुझको भ़ी बनाना है |
पश्त हूँ मैं पसीने से खोदता हूँ जमीं दिन भर
मुझे खुद मकबरा अपना ही जीते जी बनाना है |
लिखा जो स्लेट पर उसको मिटाना क्या मिटाना है
लिखाकर मै जो लाया हूँ मुझे उसको मिटाना है |
सिकंदर जाते खाली हाथ इस रंगीन दुनिया से
मुझे दुनिया से तेरी साथ कुछ लेकर के जाना है |
सरे बाज़ार क्यों करते मेरी अस्मत का तुम सौदा
मुझे नीलाम करके अपनी हस्ती आज जाना है |
कोई तो आए और बोली लगाए मेरे अरमा की
किसी भ़ी भाव में ईमान मुझको बेच जाना है |
कोई ढूंढा करे लेकर चिरागे रोशनी मुझको
मुझे तलबे में अपने आप को उसके छुपाना है |
बड़ा जालिम ज़माना है ना निकलो घर से तुम अपने
आज शीशे की बोतल में मुझे तुमको छुपाना है |
ये मोहलत ली है मैंने कुछ दिनों की आशियाने में
छोड़ कर मुझको बिस्तर एक दिन तो भाग जाना है |
चाहने वालों में एक नाम मुझको भ़ी कमाना है |
जिस्म में ख्वाइशें तो यूं हजारों थीं मेरे यारो
मगर किस्मत में जो लिक्खा वही हम को निभाना है |
यूं तो मेरी गली में रोज एक आता भिकारी है |
मैं उसको दूं भला क्या मुझको बच्चों को खिलाना है |
आग पानी में लगती है तो लग जाने भ़ी दो अबके
समुन्दर को जलाकर मुझको लोगों को दिखाना है |
मेरी तारीफ़ करके क्यों मुझे देते हो तुम धोखा
मुझे मालूम है इस शहर में किसका ज़माना है |
बदलने को बदल जाऊं मगर कोई बजह तो हो
मुझे इस उम्र में अब नाम थोड़े ही कमाना है |
तोड़ दो वायदे कश्में मुझे क्या फर्क पड़ता है
मुझे अब कौन सा तुमसे कोई रिश्ता निभाना है |
इरादा जो भ़ी हो तुम जानते मन में खुद बेहतर
मुझे कह कर के ईसा लगता सूली चढ़ाना है |
लगी थी आग सीने में सो तुमसे पानी कह बैठा
बरना आंसू से ही मुझको तो बड़वानल बुझाना है |
मुकद्दर में लिखी है मुफलिसी मजबूर इस खातिर
बरना एक खूबसूरत ताज मुझको भ़ी बनाना है |
पश्त हूँ मैं पसीने से खोदता हूँ जमीं दिन भर
मुझे खुद मकबरा अपना ही जीते जी बनाना है |
लिखा जो स्लेट पर उसको मिटाना क्या मिटाना है
लिखाकर मै जो लाया हूँ मुझे उसको मिटाना है |
सिकंदर जाते खाली हाथ इस रंगीन दुनिया से
मुझे दुनिया से तेरी साथ कुछ लेकर के जाना है |
सरे बाज़ार क्यों करते मेरी अस्मत का तुम सौदा
मुझे नीलाम करके अपनी हस्ती आज जाना है |
कोई तो आए और बोली लगाए मेरे अरमा की
किसी भ़ी भाव में ईमान मुझको बेच जाना है |
कोई ढूंढा करे लेकर चिरागे रोशनी मुझको
मुझे तलबे में अपने आप को उसके छुपाना है |
बड़ा जालिम ज़माना है ना निकलो घर से तुम अपने
आज शीशे की बोतल में मुझे तुमको छुपाना है |
ये मोहलत ली है मैंने कुछ दिनों की आशियाने में
छोड़ कर मुझको बिस्तर एक दिन तो भाग जाना है |